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Tuesday, May 19, 2015

अपमानित-सी पायल

मेरी और मेरी दोस्त की बेटी के बीच उसकी टीचर को लेकर संवाद चल रहा था। मेरी दोस्त की बेटी और उसकी टीचर के बीच बहुत अच्छा सम्बन्ध है। वह अपनी टीचर से हर बात साझा करती है और मुझे बताते हुए भी वह बहुत भावुक थी अपनी टीचर के लिए...तभी मेट्रो में साथ बैठी एक औरत ने एक किस्सा सुना डाला।।।। जिसे मैंने एक कहानी का रूप देने की कोशिश की।
रोज़ की तरह पायल देरी से आने की सज़ा में गेट के बाहर
ही खड़ी है। प्रार्थना शुरू हो चुकी थी। वह पगली गेट के सराखों से गर्दन निकाले अंदर झांक रही है। उलटी-
सीधी सी गुंथी बेढंगी सी दो चोटी लटकाए प्रार्थना के सुनाई पड़ते बोल दोहरा रही थी।

चौकीदार ने जाने किसका इशारा पाकर देरी से आए
बच्चों को वहीँ गेट के अंदर कतार में खड़ा कर दिया। राष्ट्रगान के बाद प्रार्थना में खड़े सभी बच्चे लाइन लगाकर अपनी-अपनी क्लास में चले गए। देरी से आये बच्चे अब इंतज़ार में थे कि कब कोई टीचर आए उठ-बैठ कराए और उन्हें भी क्लास में भेजे। एक टीचर उन्हें अपनी और आती दिखाई दी। अचानक पायल को कुछ याद हो आया और वो कोने ली लाइन से हटकर बीच-कूच में घुसने लगी। शायद वह पायल की टीचर हो।
उठ-बैठ का सिलसिला शुरू हुआ नन्हे-मुन्हे साथी बैग के साथ अपना भार लिए उठते और फिर बैठ जाते। कुछ संभल कर उठ पाते तो कुछ तेजी से उठते तो कुछ उठते-उठते ही उठ पाते लेकिन गिनती के हिसाब से सब उठ-बैठ कर ही रहे थे। टीचर ने अगले दिन के लिए हमेशा की तरह हिदायत दी "कल भी कोई लेट आया तो उसे वापिस भेज दूंगी या पुरे दिन मुर्गा बनाकर रखूंगी। " आदतन सभी ने उस हिदायत को स्वीकारा और लाइन की कतार में अपनी-अपनी क्लास में दाख़िल होते गए। एकाएक टीचर की नज़र पायल पर पड़ ही गई। देखते ही टीचर ने दो रसीद दिए कि जूते कहां है?
पायल कुछ न बोली। टीचर ने उसकी क्लास पूछी और क्लास टीचर का नाम। अगले दिन माँ भी हाजिरी के लिए बुलावा दे डाला। पायल आंसुओं का घूंट पी गई और क्लास की तरफ मुड़ चली। ये साफ़ हो चूका था कि ये पायल की क्लास टीचर नहीं थी। क्लास तक जाते जाते पायल शांत हो चुकी थी आंसू आँखों के कोरों पर सूख चुके थे कि तभी ...

में आई कमिन मैंम? (पायल ने दरवाज़े से अंदर हाथ आगे बढ़ाते हुए क्लास में दाख़िल होने की इज़ाज़त मांगी। )
टीचर उसे ऊपर से नीचे तक उसे निहार लेने के बाद- "आजा चल बैठ।
आज तेरी छुट्टी लगेगी रोज़ लेट आती है।"
पायल ने टीचर की तरफ देखते हुए अपना बेग आगे वाले बेंच पर रखा और बैठ गयी।
टीचर फिर कुछ कहती कि नज़र उठाते ही पायल को बेंच से उठाया।
टीचर-"खड़ी हो वहां से। पीछे बैठेगी आज से तू। लेकिन आज लेट है न दोनो हाथ ऊपर करके बेंच पर खड़ी हो जा। तुझे समझ नहीं आता रोज़ ही लेट आना और गन्दी बनकर आना।

अपमानित पायल चुपचाप बैग उठाए सबसे पीछे गई और बेंच पर खड़ी हो गई। इधर-उधर देखते हुए वह आपनी नज़रों को झुक लेती । दोस्तों का उसपर हसना उसे अच्छा नहीं लगता । हिलती-डुलती वह जहां नज़र घुमाती कोई न कोई उसे उसपर हस्त दिखाई पड़ता। वह ला फिर एक लज्जित सी मुस्कान लिए यूँही खड़ी रहती। यहाँ-वहां ताकते उसके हाथ अक्सर नीचे आ जाते तो टीचर टोक देती लेकिन ये बार बार होता रहता। नतीजन टीचर को गुस्सा आया और पायल को धो डाला। पीटते हुए टीचर का गुस्सा शब्दों में भी नज़र आया। रोज़ का लेट आना। चोटी क्यों ठीक से नहीं बनती। गन्दी वर्दी और जूते क्यों नहीं होते कभी। हर बात ज़ोरदार तो कभी ठन्डे थप्पड़ के साथ उसके जिस्म पर पड़ती। लेकिन पायल अपने मुंह से सिर्फ इतना कहती मैडम कल ले आएंगे , कल ले आएंगे। इस बात पर वह और पिट रही थी क्योंकि ये कल भी कई महीनों से नहीं आया। रोते-रोते साँस उखड़ जाया करती थी। फिर भी घण्टों सुबकती और स्कूल की हर प्रक्रिया का हिस्सा बनती। रोना पिटना और अपमानित होना जैसे उसके दिन का हिस्सा बन गया हो। धीरे-धीरे वह दिन आ गया था जब पायल ने स्कूल आना बंद कर दिया था। अपनी एक दोस्त से ये कहलवा भेज कर की वह स्कूल नहीं आएगी कभी नाम काट दो उसका।
(चौथी क्लास में पढ़ती 10 साल की पायल अक्सर क्लास में बेज़्ज़ती सहा करती। कभी जूते नहीं होते तो कभी स्कूल की वर्दी साफ नहीं होती तो कभी ठीक से पहनी नहीं होती और तो और चोटी तो कभी ठीक से बनती ही नहीं थी। खुद से जितना हो पाता था वह कर लेती। मगर फिर भी ख़राब होता जिस कारण वह रोज़ सज़ा की पात्र बनती। माँ और बढ़ी बहन कोठी में काम किया करती थी। बाप ने दूसरी शादी की हुई थी। किराये का मकान और 5 बहन भाई। पायल पस्त हो गई थी लेकिन मन की और घर बात किसी को न कहती। ये बात तब पता चली जब पायल की बात क्लास में हो जाया करती थी और टीचर उसके बारे में खबर लाने को उसके नज़दीकी दोस्त को कहती।)
पायल की पढ़ाई ख़राब करने का पूरा जिम्मा मेरे सिर है। चार साल हो गए मुझे शिफ्ट हुए वहां से। मैंने कभी कोशिश ही नहीं की उसे झँझोड़ने की। उसके मन की बात को जानने की। मैं टीचर होकर भी एक फेलियर हूँ। ये मलाल मुझे हमेशा रहेगा ही।
वह ये सब कहते कहते बहुत भावुक हो गई थी। उन्हें अपनी हार का अहसास था। वह समझ चुकी थी कि एक टीचर के दायित्व में सिर्फ पनिशमेंट ही नहीं बल्कि और भी कई जिम्मेदारियां जुडी होती है।