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Saturday, January 18, 2014

टीचर की ग़ैर-हाज़री

टक.… टक … टक.… टक.…  तू अपनी पेन्सिल डेस्क पर मरना बंद करेगी या नहीं।  डेस्क पर हाथ का पसारे उस पर अपने सिर को रखे दूसरे हाथ से लगातार पेन्सिल को बजाती हुई क्लास से बेखबर-सी अपनी धुन में है।  नेहा ने सलोनी की पेन्सिल को पकड़ खींचते हुए अपनी बात फिर दोहराई।
सलोनी मुस्कुराते हुए  - नहीं,  मुझे तो मज़ा आता है।
नेहा थोड़ा खीजते स्वर में - बंद कर न,
सलोनी - नहीं
नेहा - रुक , मैं अभी तेरी शिकायत मैडम से बोलती हूं।
सलोनी - हाँ हाँ, जा जा बोलकर आ, मैं भी कल वाली बात मैडम को बता दूंगी कि मोहिनी की कॉपी तूने चुराई थी।
नेहा - जा बोल दिओ, मोहिनी की कॉपी नहीं थी।  उसने चेक कर ली।  है ना मोहिनी।  तेरी कॉपी नहीं थी न वो ?
मोहिनी - (अपनी ही सीट से ) हाँ मेरी नहीं थी।
नेहा-  (अपना अंगूठा दिखाते हुए) बस सुन लिया! जा बोल दे अब।  चल मोहिनी मैं हूँ नए गाने पर, तू डांस कर।
मोहिनी - (अपनी आँखों को दिवार पर पसारती हुई ) मैं अकेली ???  और लोगों को भी तो बुला।
नेहा - अपने डेस्क को ही बजाते हुए ही - ऐ सुन आजा, उसे भी बुला ले, सोनी को भी , मंजू को भी।